वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 विपक्ष के भारी विरोध के बाद इसे विस्तृत समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा गया।
दिल्ली । विपक्ष के विरोध के बीच अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने मुसलमान वक्फ विधेयक 2024 को गुरुवार को सदन में पेश किया। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी ने इस दौरान मत विभाजन की माँग की लेकिन अध्यक्ष ओम बिरला ने इसकी अनुमति नहीं दी और विधेयक को ध्वनिमत से पेश कर दिया गया।
तृणमूल कांग्रेस के सौगत राय ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि सरकार वक्फ संपत्ति पर कब्जा करना चाहती है। पूरे देश में वक़्फ़ की 9.4 लाख एकड़ भूमि है जिस पर सरकार हस्तक्षेप करना चाहती है।
उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्य नहीं होना चाहिए क्योंकि यह संपत्ति मुस्लमानों की है और उसके निर्णय में उन्हीं को होना चाहिए। यह संवेदनशील मामला है इसमें जल्दबाजी की जरूरत नहीं है।
रिजिजू ने कहा कि इस कानून को निरस्त करना आवश्यक है। वर्ष 1923 का अधिनियम तो अस्तित्व में ही नहीं है, इसलिए इसे हटाना चाहते हैं।
इस पर गृह मंत्री अमित शाह ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि आजादी के बाद वक्फ बोर्ड के कानून में संशोधन होने के बाद ‘मुसलमान वक्फ कानून-1923’ का अस्तित्व अपने आप ही समाप्त हो गया था, लेकिन, इसे कागजों से नहीं हटाया गया। उन्होंने कहा कि यह उस कानून को सिर्फ कागजों से हटाने के लिए लाया गया है, जो अस्तित्व में ही नहीं है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 विपक्ष के भारी विरोध के बाद इसे विस्तृत समीक्षा के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया गया।
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने वक्फ बोर्डों को नियंत्रित करने वाले कानून में संशोधन से संबंधित विधेयक पेश करने की अनुमति का प्रस्ताव रखा। कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने इस विधेयक को संविधान के विभिन्न प्रावधानों के विरुद्ध और मुसलमानों के धार्मिक मामलों में दखल देने का प्रयास मानते हुए इसका पुरजोर विरोध किया।
विपक्ष ने अध्यक्ष ओम बिरला से नियम 72 के तहत विधेयक को पेश करने से पहले बहस कराने की मांग की जिसे अध्यक्ष ने स्वीकार किया। पक्ष और विपक्ष के तमाम सदस्यों की राय सुुनने के बाद श्री रिजिजू ने कहा कि इसको लेकर विपक्ष के सदस्य जो विरोध कर रहे हैं वह राजनीतिक दबाव में हो रहा है लेकिन सच यह है कि यह विधेयक सबके हित में है और इससे वक्फ संपत्ति में गरीब मुसलमानों का हित साधा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि 90 हजार से ज्यादा मामले वक्फ बोर्ड में लम्बित हैं और इन सब विषमताओं को देखते हुए और लोगों को न्याय देने के लिए यह विधेयक लाया गया है। नये विधेयक में छह माह में मामले के निस्तारण का समय तय किया गया है।
उन्होंने कहा कि विधेयक में किए प्रावधान से संविधान के किसी अनुच्छेद का उल्लंघन नहीं किया गया है और इसमें किसी का हक नहीं छीना जा रहा है। इसमें जिनको सदियों से हक नहीं दिया गया है उन्हें हक दिया गया है। विधेयक में वक्फ बोर्ड के लिए महिलाओं की सदस्यता को अनिवार्य किया गया है और इसमें हर मुस्लिम वर्ग की महिलाएं शामिल होंगी।
उन्होंने कहा कि उनकी सरकार पहली बार यह विधेयक नहीं लाई है। सरकार 1995 में जो वक्फ विधेयक लेकर आई थी वह कानून अपने मकसद में सफल नहीं रहा है। विधेयक जिस उद्देश्य के लिए लाया गया था उसमें पूरी तरह से विफल रहा है। उन्होंने कहा कि नया बिल बहुत विचार कर लाया गया है और इस बिल का सभी को समर्थन करना चाहिए क्योंकि करोड़ों लोगों को इंसाफ नहीं मिल रहा है। इस बिल का विरोध करने से पहले करोड़ों गरीब मुसलमानों के बारे में सोचिए तब इसका विरोध कीजिए। इस मुद्दे पर कई कमेटियां बनी थी इसको लेकर वक्फ इक्वरी रिपोर्ट पेश की गई थी। सारी वक्फ संपत्ति को व्यवस्थित करने की जरूरत है। इसके लिए एक न्यायाधिकरण हो तथा आडिट और एकाउँट की व्यवस्था बेहतर होनी चाहिए।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि वक्फ पर दो कमेटी कांग्रेस के समय में बनी थी। सच्चर समिति ने कहा कि जितना वक्फ बोर्ड की संपत्ति है इससे बहुत कम पैसा आ रहा है यह गलत है और अगर सही तरीके से इस संपत्ति का संचालन ठीक हो तो 12 हजार करोड सालाना मिल सकता है। सच्चर कमेटी ने कहा कि वक्फ बोर्ड में विशेषजों को लाने की जरूरत है और उसके पैसे का राजस्व का रिकार्ड होना चाहिए। उन्होंने कहा कि नये कानून में पूरी तकनीकी का इस्तेमाल कर विधेयक को लाया गया है और वक्फ संपत्ति सबकी संपत्ति बने और उसका दुरुपयोग नहीं हो इसका पूरा ध्यान रखते हुए विधेयक लाया गया है। नये बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व अनिवार्य किया गया है और मुसलमानों में सभी वर्गों को इसमें रखा गया है।
उन्होंने कहा कि पहले के कानून में यह प्रावधान था कि यदि आपने अपनी जमीन के लिए हक की बात नहीं की तो उस जमीन पर कब्जा कर लिया जाता है। किसी जमीन को लेकर यह कहा जाता कि इस जमीन पर किसी के परिजनों ने नमाज पढी है तो वह जमीन वक्फ बोर्ड 1995 के कानून के तहत अपने कब्जे में ले लेता था और यह इस कानून की बहुत बड़ी खामी है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सरकार यह संशोधन विधेयक लेकर अचानक नहीं आई है। मुसलमानों के सभी वर्गों से इस बारे में विचार किया गया है और संसद के कई सदस्य निजी स्तर पर मानते हैँ कि इस विधेयक के लाने से वक्फ का भ्रष्टाचार रुकेगा। वक्फ बोर्ड की समस्याओं पर व्यापक स्तर पर विचार विमर्श हुआ है और उसके बाद विधेयक तैयार किया गया है। हर राज्य से शिया, सुन्नी, अहमदिया, बोहरा, आगाखानी तथा अन्य मुस्लिम तबकों के साथ विचार कर यह विधेयक लाया गया है।
उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड की हालत यह है कि तमिलनाडु के एक गांव का इतिहास सैकड़ों साल पुराना है लेकिन बोर्ड ने पूरे गांव को ही वक्फ बोर्ड की संपत्ति घोषित कर दिया और गांव के लोग अपने पूर्वजों की जमीन से बेदखल हो गये। उनका कहना था कि सवाल किसी धर्म विशेष का नहीं है बल्कि यह गलत को सही करने का कानूनी प्रयास है और इस विधेयक के पारित होने से इस तरह के अन्याय को रोका जा सकेगा। कर्नाटक वक्फ बोर्ड का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वहां करोड़ों की संपत्ति को वाणिज्यिक काम के लिए बदल दिया है। इस तरह की मनमानी को रोकने के लिए सरकार यह विधेयक लाई है।
श्री रिजिजू ने कहा कि कोई भी व्यक्ति किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति घोषित कर सकता था। वह मुसलमान हो या गैर मुसलमान हो वह किसी भी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकता था और यह बहुत खतरनाक स्थिति थी जिसे बदलने की सख्त जरूरत है।
इससे पहले विधेयक पेश किये जाने को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना के एकनाथ शिंदे ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि विपक्षी दलों ने देश में संविधान के संकट होने का भ्रम फैलाकर लोकसभा का चुनाव जीता है और अब इस विधेयक को लेकर भ्रम फैलाया जा रहा है। कांग्रेस के गौरव गोगोई ने कहा कि यह कानून धर्म और आस्था से जुडा है। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, द्रमुक, माकपा, भाकपा, वाईएसआर कांग्रेस आदि पार्टियों ने जहां विधेयक का विरोध किया, वहीं सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में शामिल जनता दल यूनाइटेड, तेलुगु देशम और शिवसेना ने इस विधेयक का समर्थन किया। शिवसेना के श्रीकांत एकनाथ शिंदे ने विपक्ष पर जोरदार हमला करते हुए कहा कि जो देश की व्यवस्थाओं को जाति एवं धर्म के आधार पर चलाना चाहते हैं, उन्हें शर्म आनी चाहिए। इस विधेयक का मकसद पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाना है लेकिन संविधान पर भ्रम फैलाने की कोशिश की जा रही है। जो लोग विरोध कर रहे हैं, उनकी सरकार ने जब महाराष्ट्र में शिर्डी, महालक्ष्मी मंदिरों में प्रशासक बैठाये थे, उन्हें संविधान एवं संघीय ढांचे की याद क्यों नहीं आयी।
कांग्रेस के के सी वेणुगोपाल ने कहा कि यह विधेयक संविधान विरोधी है और एक समुदाय के हितों को नुकसान पहुंचाने वाला है। उन्होंने कहा कि संविधान में हर समुदाय को अधिकार है अपनी धार्मिक, चैरिटेबल आधार पर चल अचल संपत्ति रखे। इस विधेयक में वक़्फ बोर्ड में दो गैर मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की बात कही गयी है। उन्होंने सवाल किया कि क्या अयोध्या के श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र न्यास में गैर हिन्दू हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर आक्रमण है और संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का अतिक्रमण है। भारत की संस्कृति में सब एक दूसरे की आस्थाओं एवं धार्मिक विश्वासों का आदर करते हैं। लेकिन यह कदम उनमें विभाजन पैदा करेगा।
श्री वेणुगोपाल ने आरोप लगाया कि सरकार फांसीवाद की ओर बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि वक्फ संपत्तियां सैकड़ो वर्ष पुरानी हैं। उन पर विवाद खड़ा किया जाएगा। यह विधेयक गलत मंशा से लाया गया है। यह विधेयक पारित नहीं हो सकता है।
समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा कि यह विधेयक सोची समझी राजनीति से लाया गया है। जब वक्फ़ बोर्ड में सदस्यों को लोकतांत्रिक ढंग से चुने जाने की व्यवस्था है तो मनोनयन क्यों करने की जरूरत है। क्यों गैर बिरादरी का व्यक्ति बोर्ड में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है कि भाजपा हताश, निराश चंद कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए ये विधेयक लायी है। इसके बाद श्री यादव ने कहा कि ये विधेयक इसलिये लाया गया है कि ये अभी अभी हारे हैं। उन्होंने अध्यक्ष को संबोधित करते हुए कहा कि अध्यक्ष का पद लोकतंत्र के न्यायालय होता है लेकिन अध्यक्ष के भी अधिकारों को भी काटा जा रहा है।
इस पर गृह मंत्री अमित शाह भड़क गये। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के अधिकार पूरे सदन के अधिकार हैं और श्री अखिलेश यादव उन अधिकारों के संरक्षक नहीं हैं। बिरला ने सदस्यों को हिदायत दी आसन या संसद की आंतरिक व्यवस्था पर व्यक्तिगत टिप्पणियां नहीं करें।
तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंद्योपाध्याय और कल्याण बनर्जी ने कहा कि सदन काे इस बारे में कानून बनाने का अधिकार नहीं है। संविधान में यह राज्यों का विषय कहा गया है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि सरकार को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। श्री बनर्जी ने कहा कि यह विधेयक संवैधानिक नैतिकता के भी खिलाफ है और मुसलमानों को निशाना बनाने के लिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि चुनाव के पहले भारत की हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की कोशिश की गयी थी जो कामयाब नहीं हो पायी।
द्रमुक की कनिमोझी ने कहा कि संसद में आज बहुत दुख भरा दिन है जब संविधान के तमाम अनुच्छेदों का उल्लंघन करने वाला विधेयक आया है। हमने कुछ दिन पहले ही संविधान की रक्षा की शपथ ली है और यह विधेयक संविधान, संघीय ढांचे और मानवता पर खुला अतिक्रमण है और न्याय का हनन है। तमाम पुरानी मस्जिदों पर खतरा आयेगा क्योंकि ये कुछ पुरातत्वविद कहेंगे कि अमुक मस्जिद पहले मंदिर थी। उन्होंने कहा कि यह एक समुदाय को निशाना बनाने के लिए लाया गया है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) की सुप्रिया सुले ने कहा कि सरकार को विधेयक को वापस लेना चाहिए या किसी समिति को भेजना चाहिए। लेकिन इस विधेयक को सबसे पहले मीडिया को बताया गया फिर सांसदों को। यह संसद का अपमान है। उन्होंने कहा कि इस विधेयक में वक्फ अधिनियम के कई धाराओं को समाप्त करने का प्रस्ताव है और वक्फ पंचाट को भी कमजाेर किया गया है। उन्होंने कहा कि हर देश में अल्पसंख्यकों को सुरक्षित रखा जाता है। आखिर ऐसा क्या है कि इस विधेयक को अभी लाना है।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के ईटी मोहम्मद बशीर ने कहा कि यह संविधान एवं उसमें वर्णित मौलिक अधिकारों का हनन है। यह गलत मंशा और गंदे एजेंडे के तहत लाया गया है। सरकार वक्फ की संपत्तियां हड़पना चाहती है और इस तरह से देश के सेकुलर ढांचे का ध्वस्त कर रही है। इस विधेयक के पारित होने से वक्फ की सारी व्यवस्था अस्त व्यस्त हो जाएगी। सरकार क्रूर हो गयी है और देश में जहर फैला रही है।
रेवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (आरएसपी) के एन के प्रेमचंद्रन नेे कहा कि यह विधेयक सेकुलरिज़्म के खिलाफ है। वक्फ का एकमात्र मकसद चल अचल संपत्तियों का बेहतर प्रबंधन करना है। इस विधेयक के पारित हाेने से वक्फ बोर्ड शक्तिहीन हो जाएगा। उन्होंने कहा कि वह सरकार को और इस सदन को आगाह करना चाहते हैं कि यदि नया कानून संवैधानिक विवेचना के लिए उच्चतम न्यायालय गया तो वहां यह खारिज कर दिया जाएगा।
ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुस्लमीन के असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि वक्फ एक अनिवार्य मजहबी गतिविधि है। नये विधेयक के प्रावधान में तमाम विसंगतियां हैं। बोर्ड में कोई गैर मुस्लिम सदस्य बन सकता है लेकिन संपत्ति दान करने के लिए उसका पांच साल से इस्लाम का अनुपालन अनिवार्य किया गया है। कलेक्टर को अधिकार देने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि वक्फ कोई सार्वजनिक या सरकारी संपत्ति नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार देश को फिर से बांटने की कोशिश कर रही है।
समाजवादी पार्टी के मोहिबुल्लाह ने कहा कि हिन्दुओं के चारधाम, सिखों के गुरुद्वारों में प्रबंधन समिति में गैर समुदायिक लोग नहीं होते हैं लेकिन मुस्लिमों के साथ अन्याय किया जा रहा है। वक्फ मुसलमानों का मजहबी अकीदा है। सरकार गलती करने जा रही है। संशोधनों के माध्यम से सरकारी अमले को मजहब में दखलंदाजी करने का अधिकार दे रहे हैं। इस विधेयक से मुल्क की साख को नुकसान होगा और अल्पसंख्यक समुदाय खुद को असुरक्षित समझेगा। कहीं ऐसा ना हो कि संविधान की रक्षा के लिए लोग सड़कों पर उतर आयें।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के मियां अल्ताफ अहमद ने कहा कि मुल्क के सेकुलर लोगों के लिए यह एक बड़ा झटका है। दुनिया में हिन्दुस्तान को सेकुलरिज़्म एवं जम्हूरियत से पहचाना जाता है। भारत की छवि खराब होगी। वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के पी वी मिथुनरेड्डी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के के. सुब्बारायण, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के के. राधाकृष्णन, वीसीके के थोल तिरुमावलम, कांग्रेस के इमरान मसूद ने भी विधेयक का विरोध किया।
नियम 72 के तहत चर्चा में विधेयक का समर्थन करते हुए जनता दल यूनाइटेड के नेता एवं केन्द्रीय मंत्री राजीव रंजन (लल्लन सिंह) ने कहा कि कई सांसदों की बातों से लग रहा है कि यह विधेयक मुसलमान विरोधी है। जबकि यह मुसलमान विरोधी नहीं है। उन्होंने विपक्षी नेताओं के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि मंदिर के ट्रस्ट और वक्फ में अंतर होता है। यह विधेयक कानूनी संस्था को पारदर्शिता एवं जवाबदेही से काम करने लायक बनाने के लिए है। यह संस्था निरंकुश हो गयी तभी इस विधेयक काे लाया गया। उन्होंने कहा कि विपक्ष देश में भ्रम फैलाना चाहता है। जिन लोगों ने हजारों सिखों को सड़कों पर मारा, वे ही अब अल्पसंख्यकों के हितैषी बन रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह विधेयक निश्चित रूप से आना चाहिए।
तेलुगु देशम पार्टी के जी एम हरीश बालयोगी ने कहा कि जिस भावना से यह विधेयक लाया गया है, हम उसकी सराहना करते हैं। इसका मकसद अधिकारों के दुरुपयोग को रोकना है। वह विधेयक का समर्थन करते हैं लेकिन यदि सरकार इसे व्यापक विचार विमर्श के लिए किसी समिति को भेजती है तो उन्हें को कोई आपत्ति नहीं होगी।